दस आज्ञा
पहली आज्ञा :
परमेश्वर तेरा ईश्वर में हूँ , किसी दूसरे को ईश्वर मत मान ।
इसका क्या अर्थ है?
हम सब वस्तुओं से अधिक ईश्वर का भय, प्रेम और भरोसा रखें ।
दूसरी आज्ञा :
किसी प्रकार की मूर्ति पुजा मत कर।
इसका क्या अर्थ है?
हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें ।
हम किसी बनाई हुई वस्तु की पुजा सेवा न करें । न उसका नाम लेवें , न उसके सामने झुकें । क्योंकि ईश्वर आत्मा है और अवश्य है की उसके भजन करनेवाले, आत्मा और सच्चाई से भजन करें ।
तीसरी आज्ञा :
परमेश्वर अपने ईश्वर का नाम अकारथ मत ले क्योंकि ईश्वर , उसको जो उसका नाम अकारथ लेता है निर्दोषी न ठहरावेगा ।
इसका क्या अर्थ है ?
हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें ।
हम उसके नाम से श्राप न देवें, न किरिया खावें न टोना ओझाई करें, न झूठ बोलें न ठगें ।
परंतु सब विपत्तियों में उसकी दोहाई, बिनती, स्तुति और धन्यवाद करें ।
चौथी आज्ञा :
विश्रामवार को पवित्र रखने के लिए मत भूल ।
इसका क्या अर्थ है ?
हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें ।
हम उसका वचन और धर्मोपदेश को तुच्छ न करें परंतु पवित्र मान कर आनंद से सुनें और सीखें ।
पाँचवी आज्ञा :
अपने माता – पिता का आदर कर जिससे तेरा भला हो और पृथ्वी पर तेरा जीवन अधिक होवे ।
इसका क्या अर्थ है ?
हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें ।
हम अपने माता – पिता और स्वामियों का अपमान न करें न ही उनको क्रोधित करें ।
परंतु उनका सम्मान और सेवा करें, आज्ञा मानें और उनको प्यार करें ।
छठवी आज्ञा :
मनुष्य हत्या मत कर ।
इसका क्या अर्थ है ?
हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें ।
हम अपने पड़ोसी के देह और प्राण को किसी प्रकार की हानि और दुख न पहुंचावें ।
परंतु देह और प्राण की विपत्ति में उसकी सहायता और भलाई करें ।
सातवी आज्ञा :
व्यभिचार मत कर ।
इसका क्या अर्थ है ?
हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें ।
हम अपने मन वचन और कर्म में शुद्ध और संयमी होकर जीवन बितावें और हरेक स्त्री – पुरुष, परस्पर प्रेम और आदर करें ।
अठवी आज्ञा :
चोरी मत कर ।
इसका क्या अर्थ है ?
हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें ।
हम अपने पड़ोसी का धन-संपत्ति न छीनें , न खोट माल अथवा व्यापार को अपनावें ।
परंतु उसके धन-संपत्ति और जीविका की वृद्धि और रक्षा में सहायता करें ।
नवी आज्ञा :
अपने पड़ोसी पर झूठी साक्षी मत दे ।
इसका क्या अर्थ है ?
हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें ।
हम अपने पड़ोसी से झूठ न बोलें, न उसका भेद खोलें, न चुगली , न मिथ्या अपवाद करें ।
परंतु उसका पक्ष और आदर करें और जहां तक बन पड़े, यत्न से उसको भला ठहरावें ।
दसवी आज्ञा :
अपने पड़ोसी के घर और उसके परिवार का लालच मत कर ।
इसका क्या अर्थ है ?
हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें ।
हम अपने पड़ोसी के घर –द्वार, खेत और मवेशियों पर लोभ की दृष्टि न रखें , न बहाना करके उनको अपनावें, न उसकी स्त्री , दास – दासी को फुसलावें या बिगाड़ें ।
परंतु यत्न करें कि जो कुछ उसका है,कुशल से उसके पास रहे और उसके काम आवे ।
पहली आज्ञा :
परमेश्वर तेरा ईश्वर में हूँ , किसी दूसरे को ईश्वर मत मान ।
इसका क्या अर्थ है?
हम सब वस्तुओं से अधिक ईश्वर का भय, प्रेम और भरोसा रखें ।
दूसरी आज्ञा :
किसी प्रकार की मूर्ति पुजा मत कर।
इसका क्या अर्थ है?
हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें ।
हम किसी बनाई हुई वस्तु की पुजा सेवा न करें । न उसका नाम लेवें , न उसके सामने झुकें । क्योंकि ईश्वर आत्मा है और अवश्य है की उसके भजन करनेवाले, आत्मा और सच्चाई से भजन करें ।
तीसरी आज्ञा :
परमेश्वर अपने ईश्वर का नाम अकारथ मत ले क्योंकि ईश्वर , उसको जो उसका नाम अकारथ लेता है निर्दोषी न ठहरावेगा ।
इसका क्या अर्थ है ?
हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें ।
हम उसके नाम से श्राप न देवें, न किरिया खावें न टोना ओझाई करें, न झूठ बोलें न ठगें ।
परंतु सब विपत्तियों में उसकी दोहाई, बिनती, स्तुति और धन्यवाद करें ।
चौथी आज्ञा :
विश्रामवार को पवित्र रखने के लिए मत भूल ।
इसका क्या अर्थ है ?
हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें ।
हम उसका वचन और धर्मोपदेश को तुच्छ न करें परंतु पवित्र मान कर आनंद से सुनें और सीखें ।
पाँचवी आज्ञा :
अपने माता – पिता का आदर कर जिससे तेरा भला हो और पृथ्वी पर तेरा जीवन अधिक होवे ।
इसका क्या अर्थ है ?
हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें ।
हम अपने माता – पिता और स्वामियों का अपमान न करें न ही उनको क्रोधित करें ।
परंतु उनका सम्मान और सेवा करें, आज्ञा मानें और उनको प्यार करें ।
छठवी आज्ञा :
मनुष्य हत्या मत कर ।
इसका क्या अर्थ है ?
हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें ।
हम अपने पड़ोसी के देह और प्राण को किसी प्रकार की हानि और दुख न पहुंचावें ।
परंतु देह और प्राण की विपत्ति में उसकी सहायता और भलाई करें ।
सातवी आज्ञा :
व्यभिचार मत कर ।
इसका क्या अर्थ है ?
हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें ।
हम अपने मन वचन और कर्म में शुद्ध और संयमी होकर जीवन बितावें और हरेक स्त्री – पुरुष, परस्पर प्रेम और आदर करें ।
अठवी आज्ञा :
चोरी मत कर ।
इसका क्या अर्थ है ?
हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें ।
हम अपने पड़ोसी का धन-संपत्ति न छीनें , न खोट माल अथवा व्यापार को अपनावें ।
परंतु उसके धन-संपत्ति और जीविका की वृद्धि और रक्षा में सहायता करें ।
नवी आज्ञा :
अपने पड़ोसी पर झूठी साक्षी मत दे ।
इसका क्या अर्थ है ?
हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें ।
हम अपने पड़ोसी से झूठ न बोलें, न उसका भेद खोलें, न चुगली , न मिथ्या अपवाद करें ।
परंतु उसका पक्ष और आदर करें और जहां तक बन पड़े, यत्न से उसको भला ठहरावें ।
दसवी आज्ञा :
अपने पड़ोसी के घर और उसके परिवार का लालच मत कर ।
इसका क्या अर्थ है ?
हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें ।
हम अपने पड़ोसी के घर –द्वार, खेत और मवेशियों पर लोभ की दृष्टि न रखें , न बहाना करके उनको अपनावें, न उसकी स्त्री , दास – दासी को फुसलावें या बिगाड़ें ।
परंतु यत्न करें कि जो कुछ उसका है,कुशल से उसके पास रहे और उसके काम आवे ।
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Bahut badhiya Naveen Bhai..
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